Wednesday, February 23, 2011

Mahila aur vanadhikar - mahila diwas par karyakram



नारी शक्ति ज़िन्दाबाद महिला
एकता ज़िन्दाबाद महिला-मज़दूर एकता ज़िन्दाबाद
वनसम्पदा हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस व राष्ट्रीय महिला सावित्री बाई फूले दिवस
भारती राय चौधरी को समर्पित इस वर्ष का महिला दिवस
4 मार्च 2011: महिलाओं की रैली, राबटर््सगंज, सोनभद्र,उ0प्र0
8 मार्च 2011: अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस, अधौरा, कैमूर, बिहार
10 मार्च 2011: राष्ट्रीय महिला दिवस, सावित्री बाई फूले परिनिर्वाण दिवस, पलियाकलां जिला खीरी, उ0प्र0

प्यारी बहनों!
हर साल की तरह इस साल भी हम सभी महिला दिवस मनाने के लिये एक बार फिर से एकजुट हो रहे हैं। इस बार महिला दिवस पर हम महिलाओं को अपने अधिकारों के बारे में सरकार के साथ सीधे बातचीत करनी होगी व प्राकृतिक संसाधनों यानि जल, जंगल और जमीन पर अपने अधिकारों को पाना होगा। ऐतिहासिक काल से ही हम महिलाओं द्वारा घर, खेती, पशुपालन, जंगल से इर्धन लाने के लिये की गयी मेहनत को कभी भी काम का दर्ज़ा नहीं दिया गया, जिसमें कि महिला का पूरा समय चला जाता है। वही स्थिति आज भी बराबर बनी हुयी है।

हमारे संविधान के अनुच्छेद 14 में हमारे बराबरी के अधिकार को एक बुनियादी अधिकार के रूप में माना गया है, लेकिन जब जल-जंगल-ज़मीन के अधिकार की बात आती है तो हम महिलाओं की इन अधिकारों को लेकर बने तमाम कानूनों में उपेक्षा ही की गई है। भूमि अधिकारों के सवाल को हमेशा महिलाओं की सम्पत्ति के सवाल के साथ जोड़ा जाता है और महिलाओं को भूमि पर अधिकार सिर्फ पारिवारिक विरासत को लेकर बने कानूनों के आधार पर ही दिये जाने की बात की जाती है। लेकिन सच्चाई ये है कि ऐसे मामलों में भी उन महिलाओं को ज़्यादहतर अधिकार नहीं मिलता है। कुल मिलाकर जिन अधिकारों से हमारा सामाजिक व राजनैतिक सशक्तिकरण हो सकता था व हमारी सुरक्षा हो सकती थी, उन अधिकारों को देने में हमारी सरकारें हमेशा नाकाम ही रही हैं।

वनाधिकार कानून और महिलायें

देश में पारित वनाधिकार कानून 2006 ही एक ऐसा कानून है जिसमें पहली बार वनों में हम महिलाओं के मालिकाना हक़ की बात की गयी है और व्यक्तिगत, सामुदायिक अधिकारों पर भी महिलाओं के मालिकाना हक़ को दर्ज करने के प्रावधान किये गये हैं। आज वनाधिकार कानून के तहत मालिकाना हक़ देने के लिये केन्द्र सरकार, राज्य सरकारें, नौकरशाही, वनविभाग व प्रशासन किसी की भी दिलचस्पी दिखाई नहीं दे रही है। जिसपर हमारी घाड़ क्षेत्र सहारनपुर की बहन सोना ने ठीक ही कहा कि ‘‘सरकार तो हम को चाहती ही नहीं‘’। सरकार हमको इसलिये नहीं चाहती क्योंकि जब जंगल महिलाओं व समुदाय के मालिकाना हक़ के तहत आ जायेंगे तो वनविभाग, पुलिस विभाग, अधिकारियों, दलालों आदि की जंगल से होने वाली अवैध कमाई पर रोक लग जायेगी। जिसके कारण खासतौर पर वनविभाग के अधिकारियों इस अवैध कमाई से सूदखोरी का काम नहीं कर पायेंगे। इसलिये हम बहनों को यह समझने की ज़रूरत है कि जंगल पर बहनों के हक़ की बात कितनी ज़रूरी है। अगर अभी भी हम नहीं चेतेंगी तो वनविभाग जंगल को बेच कर उजाड़ देने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा। इसलिये हमें अपने हक़ के लिये जागरूक होना होगा, आगे बढ़ कर वनाधिकार कानून 2006 को समझना होगा और इस कानून के तहत मान्यता दिये गये अधिकारों को पाने के लिये अपनी समझदारी व अपना संगठन बनाकर सरकार पर लगातार दबाव बनाना पड़ेगा।
बहनों! यह कानून हमारे संघर्षों का ही नतीजा है। भारत देश में वनों के इतिहास व आज़ादी के बाद ऐसा पहली बार हुआ है कि संसद ने हम महिलाओं के अधिकारों को वनभूमि व वनों पर सामुदायिक अधिकार और प्रबन्धन के अधिकार को भी मान्यता दी है। अब वनों के अंदर किसी भी अधिकार पर केवल पुरूषों का ही अधिकार नहीं होगा। यह अधिकार पुरूष को तभी मिलेगा जब उसके साथ महिला का अधिकार भी दर्ज होगा। यही नहीं अगर कहीं पर एकल महिला है या परिवार की मुखिया है, तो भी यह अधिकार उसी के नाम से दर्ज होगा। जैसे खीरी उ0प्र0 में ग्राम बंदर भरारी में छोटकन ने वनाधिकार कानून के तहत दावा भरने से इंकार कर दिया तो उनकी पत्नी फूलमती ने कहा कि वे अपने बच्चों के लिये दावा भरेंगी। जब उन्होंने दावा किया तो ग्राम वनािधकार समिति ने उस दावे को स्वीकृत किया। इसी तरह से त्रिपुरा में भी कई परिवारों की महिला मुखिया को भूमि पर मालिकाना हक़ की पास बुक मिली है। इससे पहले इस तरह का अधिकार आज तक हमारे देश की महिलाओं को भूमि पर कभी नहीं मिला है और न ही हम मेहनतकश, भूमिहीन व खेतीहर मज़दूर महिलाओं को किसान की भी मान्यता नहीं दी है। देश में जितने भी भूमि कानून बने हैं वे केवल पुरूष व पति के देहांत हो जाने पर बेटे व परिवार को वंशज होने के नाते विरासत के आधार पर मिलते हैैं। हम महिलायें बराबर व सीधे रूप से भूमि का मालिकाना हक़ प्राप्त नहीं कर सकतीं। इस लिये वनों से जुड़ी हुई महिलाओं के लिये वनाधिकार कानून बहुत महत्वपूर्ण है। क्योंकि इसमें चाहे थोड़ा ही अधिकार हो, लेकिन महिलाओं के लिये जो भी अधिकार मिले हैं उससे वे अपने बच्चों के लिये भोजन की व्यवस्था तथा अपनी आर्थिक, सामाजिक व राजनैतिक सुरक्षा प्राप्त कर सकती हैं। अगर हम वनाधिकार कानून के तहत अधिकार पाने में सफल हो जाती हैं तो वनों में रहने वाली हम महिलओं को पुरूष आसानी से हाथ पकड़ कर घर से बाहर नहीं निकाल पायंेगे। यहीं नहीं जंगल पर हमारे अधिकार जितने मज़बूत हांेगे उतनी ही हम महिलाओं की संख्या भी पुरूषों के मुकाबले बढ़ेगी। जैसे अभी भी झाड़खंड में जहां-जहां घने वन हैं, वहां महिलाओं का अनुपात पुरूषों के मुकाबले कहीं ज़्यादा है। जबकि यह अनुपात दिल्ली व मैदानी इलाकों में जहां खेती होती है, काफी नीचे चला गया है। दिल्ली में तो 1000 पुरूष के पीछे कुल 733 महिलायें ही रह गई हैं। क्योंकि वहां महिलायें परिवार पर अपने भरण पोषण के लिये निर्भर हैं और गर्भ में ही लड़कियों को मार दिया जाता है। जबकि वनों में रहने वाली महिलायें जंगल से अपने परिवार का भोजन और रोज़़गार तलाश लेती हैं, जिससे उन्हें किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ता।

इसलिय बहनों आइये हम सब मिल कर अपने वनाधिकारों को तो हासिल करेंगे ही, साथ ही जंगल को भी आबाद करने का काम करेंगे। ताकि हमारी संख्या ज़्यादा बढ़े जिससे हम और हमारी आने वाली पीढ़ियां स्वच्छ वातावरण में रह सकें। जहां हम महिलायें ज़्यादा होंगी, वहां समाज की प्रगति की दिशा भी अलग होगी, जो कि जीविका पर आधारित होगी न कि उपभोक्तावाद पर।

महिला दिवस के अवसर पर विभिन्न कार्यक्रमों का विवरण

4 मार्च 2011: महिलाओं की रैली, राबटर््सगंज, सोनभद्र,उ0प्र0
8 मार्च 2011: अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस, अधौरा, कैमूर, बिहार
10 मार्च 2011: राष्ट्रीय महिला दिवस, सावित्री बाई फूले परिनिर्वाण दिवस, पलियाकलां जिला खीरी, उ0प्र0
नारी शक्ति ज़िन्दाबाद
महिला एकता ज़िन्दाबाद

तेरे माथे पे ये आंचल बहुत ही खूब है लेकिन
तू इस आंचल को इक परचम बना लेती तो अच्छा था

राष्ट्रीय महिला दिवस - 10 मार्च 2011

क्रांतिज्योति सावित्रीबाई फुले परिनिर्वाण दिवस

, क्रांतिज्योति सावित्रीबाई फुले देश की पहली महिला अध्यापिका व नारी मुक्ति आंदोलन की पहली नेता थीं, जिन्होंने अपने पति ज्योतिबा फुले के सहयोग से देश में महिला शिक्षा की नींव रखी। सावित्रीबाई फुले एक दलित परिवार में जन्मी महिला थीं, लेकिन उन्होंने उन्नीसवीं सदी में महिला शिक्षा की शुरुआत के रूप में घोर ब्राह्मणवाद के वर्चस्व को सीधी चुनौती देने का काम किया था। उन्नीसवीं सदी में छुआ-छूत, सतीप्रथा, बाल-विवाह, तथा विधवा-विवाह निषेध जैसी कुरीतियां बुरी तरह से व्याप्त थीं। उक्त सामाजिक बुराईयां किसी प्रदेश विशेष में ही सीमित न होकर संपूर्ण भारत में फैल चुकी थीं। महाराष्ट्र के महान समाज सुधारक, विधवा पुनर्विवाह आंदोलन के तथा स्त्री शिक्षा समानता के अगुआ ज्योतिबा फुले की धर्मपत्नी सावित्रीबाई ने अपने पति के सामजिक कार्यों में न केवल हाथ बंटाया बल्कि अनेक बार उनका मार्ग-दर्शन भी किया।

सावित्रीबाई का जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले में नायगांव नामक छोटे से गॉव में हुआ। महात्मा फुले द्वारा अपने जीवन काल में किये गये कार्यों में उनकी धर्मपत्नी सावित्रीबाई का योगदान काफी महत्वपूर्ण रहा। लेकिन फुले दंपति के कामों का सही लेखा-जोखा नहीं किया गया। भारत के पुरूष प्रधान समाज ने शुरु से ही इस तथ्य को स्वीकार नहीं किया कि नारी भी मानव है और पुरुष के समान उसमें भी बुद्धि है एवं उसका भी अपना कोई स्वतंत्र व्यक्तित्व है । उन्नीसवीं सदी में भी नारी गुलाम रहकर सामाजिक व्यवस्था की चक्की में ही पिसती रही । अज्ञानता के अंधकार, कर्मकांड, वर्णभेद, जात-पात, बाल-विवाह, मुंडन तथा सतीप्रथा आदि कुप्रथाओं से सम्पूर्ण नारी जाति ही व्यथित थी। पंडित व धर्मगुरू भी यही कहते थे, कि नारी पिता, भाई, पति व बेटे के सहारे बिना जी नहीं सकती। मनु स्मृति ने तो मानो नारी जाति के आस्तित्व को ही नष्ट कर दिया था। मनु ने देववाणी के रूप में नारी को पुरूष की कामवासना पूर्ति का एक साधन मात्र बताकर पूरी नारी जाति के सम्मान का हनन करने का ही काम किया। हिंदू-धर्म में नारी की जितनी अवहेलना हुई उतनी कहीं नहीं हुई। हालांकि सब धर्मों में नारी का सम्बंध केवल पापों से ही जोड़ा गया। उस समय नैतिकता का व सास्ंकृतिक मूल्यों का पतन हो रहा था। हर कुकर्म को धर्म के आवरण से ढक दिया जाता था। हिंदू शास्त्रों के अनुसार नारी और शुद्र को विद्या का अधिकार नहीं था और कहा जाता था कि अगर नारी को शिक्षा मिल जायेगी तो वह कुमार्ग पर चलेगी, जिससे घर का सुख-चैन नष्ट हो जायेगा। ब्राह्मण समाज व अन्य उच्चकुलीन समाज में सतीप्रथा से जुड़े ऐसे कई उदाहरण हैं, जिनमें अपनी जान बचाने के लिये सती की जाने वाली स्त्री अगर आग के बाहर कूदी तो निर्दयता से उसे उठा कर वापिस अग्नि के हवाले कर दिया जाता था। अंततः अंग्रेज़ों द्वारा सतीप्रथा पर रोक लगाई गई। इसी तरह से ब्राह्मण समाज में बाल-विधवाओं के सिर मुंडवा दिये जाते थे और अपने ही रिश्तेदारों की वासना की शिकार स्त्री के गर्भवती होने पर उसे आत्महत्या तक करने के लिये मजबूर किया जाता था। उसी समय महात्मा फुले ने समाज की रूढ़ीवादी परम्पराओं से लोहा लेते हुये कन्या विद्यालय खोले।

भारत में नारी शिक्षा के लिये किये गये पहले प्रयास के रूप में महात्मा फुले ने अपने खेत में आम के वृक्ष के नीचे विद्यालय शुरु किया। यही स्त्री शिक्षा की सबसे पहली प्रयोगशाला भी थी, जिसमें सगुणाबाई क्षीरसागर व सावित्री बाई विद्यार्थी थीं। उन्होंने खेत की मिटटी में टहनियों की कलम बनाकर शिक्षा लेना प्रारंभ किया। सावित्रीबाई ने देश कीे पहली भारतीय स्त्री-अध्यापिका बनने का ऐतिहासिक गौरव हासिल किया। धर्म-पंडितों ने उन्हें अश्लील गालियां दी, धर्म डुबोने वाली कहा तथा कई लांछन लगाये, यहां तक कि उनपर पत्थर एवं गोबर तक फेंका गया। भारत में ज्योतिबा तथा सावि़त्री बाई ने शुद्र एवं स्त्री शिक्षा का आंरभ करके नये युग की नींव रखी। इसलिये ये दोनों युगपुरुष और युगस्त्री का गौरव पाने के अधिकारी हुये । दोनों ने मिलकर ‘सत्यशोधक समाज‘ की स्थापना की। इस संस्था की काफी ख्याति हुई और सावित्रीबाई स्कूल की मुख्य अध्यापिका के रूप में नियुक्त र्हुइं। फूले दंपति ने 1851 मंे पुणे के रास्ता पेठ में लडकियों का दूसरा स्कूल खोला और 15 मार्च 1852 में बताल पेठ में लडकियों का तीसरा स्कूल खोला। उनकी बनाई हुई संस्था ‘सत्यशोधक समाज‘ ने 1876 व 1879 के अकाल में अन्नसत्र चलाये और अन्न इकटठा करके आश्रम में रहने वाले 2000 बच्चों को खाना खिलाने की व्यवस्था की। 28 जनवरी 1853 को बाल हत्या प्रतिबंधक गृह की स्थापना की, जिसमें कई विधवाओं की प्रसूति हुई व बच्चों को बचाया गया। सावित्रीबाई द्वारा तब विधवा पुनर्विवाह सभा का आयोजन किया जाता था। जिसमें नारी सम्बन्धी समस्याओं का समाधान भी किया जाता था। महात्मा ज्योतिबा फुले की मृत्यु सन् 1890 में हुई। तब सावित्रीबाई ने उनके अधूरे कार्यों को पूरा करने के लिये संकल्प लिया। सावित्रीबाई की मृत्यु 10 मार्च 1897 को प्लेग के मरीजांे की देखभाल करने के दौरान हुयी।

आज नारी की जो दुर्दशा है, उसके लिये पुरुष के साथ-साथ नारी भी जिम्मेदार है । नारी मुक्ति आंदोलन में महात्मा फूले का योगदान बेहद महत्वपूर्ण है, इसलिये नारीमुक्ति आंदोलन व महिलाओं के प्रति होने वाली हिंसा को बिना पुरूष की प्रगतिशील सोच के ख़त्म नहीं किया जा सकता। आज भी महिलाओं के प्रति होने वाली हिंसा का आंकड़ा वहीं खड़ा है, सिर्फ हिंसा के स्वरूप में बदलाव आया है। सावित्रीबाई फुले द्वारा समाज को दिये गये महिला जागरुकता के योगदान को याद करते हुये, आइये हम सब महिलायें व प्रगतिशील सोच के पुरुष सभी मिलकर महिलाओं के प्रति होने वाली हिंसा को जड़ से खत्म करने का संकल्प लें। यह उत्साहजनक बात है कि उ0प्र0 में कई मंडलों में सावित्री बाई फूले की याद में सरकार द्वारा महिला पालीटेकनिक स्थापित किये गये। हमारी मांग है कि महिलाओं के लिये विद्यालय व पालीटेकनीक हर जिले में खोले जायें व सरकारी महिला डिग्री कालेज का नाम सावित्री बाई के नाम से संचालित किया जाये ताकि उनके विचारों को व्यापक रूप से फैलाया जाये।

10 मार्च 2011 को पलिया खीरी में सावित्रीबाई की याद में विशाल महिला रैली का आयोजन किया जा रहा जिसमें अधिक से अधिक संख्या में इकट्ठा होकर इस रैली में शामिल हों।


राष्ट्रीय वन-जन श्रमजीवी मंच
कैमूर क्षेत्र महिला मज़दूर किसान संघर्ष समिति, जनमुक्ति आंदोलन, कैमूर मुक्ति मोर्चा, वनग्राम भू अधिकार मंच,थारू आदिवासी महिला मज़दूर किसान मंच,तराई क्षेत्र महिला मज़दूर किसान मंच,वनटांगिया समिति, विकल्प समाजिक संगठन, सहारनपुर,जागोरी संगठन, नई दिल्ली
मानवाधिकार कानूनी सलाह केन्द्र

संपर्कः रोमा - 9415233583, शांता भटटाचार्य - 9451066468, संतलाल -09973145571,रजनीश-08009892236


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