भारती जी की चौथी पुण्यतिथि 18 जनवरी को महिला शसक्तीकरण केंद्र, भारती सदन, नागल माफ़ी सहारनपुर में श्रद्धांजलि सभा आयोजित की जाएगी आप सभी सादर आमंत्रित है.
रोमा मुन्नीलाल
18 जनवरी 2015
भारती राय चैधरी फैलोशिप एक संक्षिप्त परिचय
साथियों,
बेहद ही हर्ष के साथ हमें यह सूचना देते हुए काफी गर्व महसूस हो रहा है कि नवम्बर 2014 से हम हमारी मरहूम महिला साथी भारती जी की याद में एक फैलोशिप की शुरूआत कर पाए हैं। यह फैलोशिप समुदाय की महिलाओं द्वारा महिला हिंसा व अन्य सामाजिक मुददों पर कार्यरत संघर्षशील महिलाओं को उपलब्ध कराना इसका मुख्य उददेश्य है। भारती जी ने वनाधिकार आंदोलन में महिलाओं की भूमिका व उनके प्राकृतिक संसाधनों पर स्वतंत्र अधिकारों को लेकर देश भर में एक लम्बे समय तक संघर्ष किया व अपनी कर्मभूमि सहारनपुर के शिवालिक वनक्षेत्र में 80 के दशक में पहली बार महिलाओं के वनोपज पर स्वतंत्र अधिकारों को बहाल करने का काम किया।
भारती जी का समुदाय की महिलाओं के साथ एक गहरा रिश्ता था व उनके ज़हन में समुदाय की महिलाओं को नेतृत्वकारी भूमिका में लाने के लिए बहुत गंभीर चिंतन रहा। चूंकि उनका विश्वास था कि, अगर नारी मुक्ति के सपने को साकार करना है, तो वह समुदाय व श्रमिक वर्ग का महिला नेतृत्व ही अपने संघर्ष से साकार कर सकता है। मध्यम वर्ग की महिलाओं के नेतृत्व से उन्हें कम उम्मीद थी, इसलिए उनका ज़्यादा वक्त समुदाय में ही बीतता था व उनको सशक्त करने के लिए भारती जी के द्वारा विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता था। उन्होंने सहारनपुर में अनुभव के आधार पर प्रदेश व देश के अन्य राज्यों में महिलाओं को संगठित करके वनोपज पर अपना अधिकार स्थापित करने हेतु सांगठनिक प्रक्रिया की शुरूआत की तथा महिला सहकारिता संघ जैसे कार्यक्रम को लेकर नये-नये प्रयोग भी किये थे। इन्ही प्रयासों को बढ़ते हुये आज विभिन्न वनक्षेत्रों में अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी यूनियन के बैनर तले महिलाशक्ति सामुहिक वन व्यवस्था को सफलतापूर्वक चला रहे है, और ये आन्दोलन एक सशक्त महिलाशक्ति के रूप में स्थापित हो रही है। इसिलिए उनके निधन के बाद जो भी उनकी जमा पूंजी थी उसे समाज में संघर्षरत महिला कार्यकर्ताओं को मदद करने का निर्णय हमारी यूनियन ने लिया। यह पूंजी बेहद ही कम है लेकिन इसके पीछे मूल उददेश्य यहीं था कि अगर इस समाज के दबे कुचले समाज से संघर्षशील महिलाओं के लिए यह मदद काफी महत्वपूर्ण होगी और इससे भारती जी के विचारों व संघर्ष को फैलाने का भी एक मौका मिलेगा। चूंकि यह संघर्ष सीधे-सीधे प्राकृतिक संसाधनों की लूट से जुड़ा है जिस पर आम ग़रीब महिलाए अपनी जीविका के लिए निर्भर रहती है। संसाधनों का नियंत्रण ही दरअसल महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा से भी जुड़ता है इसलिए इस बुनियादी मुददे पर काम करने वाली महिलाओं को इस मदद के लिए चुना गया।
इस वर्ष समुदाय की दो महिला साथियों को इस फैलोशिप के लिए चुना गया। इन महिलाओं का चयन यूनियन द्वारा क्षेत्र में काम करते वक्त किया गया जो कि अकेले ही बिना किसी संगठन या संस्था के समुदाय के ज्वलंत मुददों पर काम कर रही थी।
यह फैलोशिप नई दिल्ली के भाटी माईन्स के भागीरथ नगर की ओड समुदाय से जनजाति सदस्य की महिला सीतो मजोका व गुजरात के छोटा उदयपुर में आदिवासी व दलितों के साथ काम कर रही मनीषा सोलंकी को यूनियन की सभा में हमारे अध्यक्ष जारजूम ऐटे व कार्यकारी अध्यक्ष श्री संजय गर्ग द्वारा सम्मानित किया गया।
सीतो माजोका
सीतो माजोका ओड घुमंतु जनजाति की प्रतिनिधी बहादुर श्रमजीवी महिला हैं। ओड समुदाय के लोग आदिकाल से मिट्टी-पत्थर की खुदाई-निकासी (बेलदारी) के माहिर रहे हैं। पहले ज़माने में वे ही लोग जल प्रवाह प्रबंधन करने वाले ‘सिविल इंजीनियर’ माने जाते थे, जो अनगिनत तालाब, कुॅए, नहर, बांध आदि बिना मशीनों के बनाते थे। आज भी बड़े-बड़े शहरों में विशाल इमारतों का बेसमेंट खोदने, सड़कों के नीचे इंटरनेट के केबल बिछाने और मैट्रो रेल के लिए खुदाई व लाईन बिछाने का कठिन काम ओड ही करते आए हैं। उनका जीवन लगातार खानाबदोशी में गुज़रता रहा। कहीं भी ज़मीन का मालिकाना हक़ नहीं मिला, जहां वे अपना गाॅव बसा सकें। सीतो एक ऐसे अस्थायी मज़दूरी करने वाले ख़ानाबदोश परिवार से है।
सीतो की अगुआई में संगठन की महिलाओं ने गांव के दोनों विद्यालयों (प्राथमिक एवं उच्च माध्यमिक) पर अनेक बार दख़ल दिया और ज़ोरदार तरीक़े से अपनी नाराज़गी जताई। वहां न तो बच्चों की शिक्षा का उचित माहौल है और न ही शिक्षक जरूरत के मुताबिक उपलब्ध हैं। उनके दख़ल के नतीजे में नए शिक्षकों की नियुक्तियां हुईं और शिक्षण कार्य सुचारू हुआ। वर्तमान में सीतो दिल्ली के अरावली पहाडी़ क्षेत्र में ‘भाटी माईन्स’ जो एक वन सेन्चुरी हैं के अन्दर भागीरथ नगर की निवासी हैं, वह अपने गांव की महिला मजदूरों को संगठित करने और बालिकाओं की शिक्षा के अधिकार के लिए संघर्षरत हैं। उनका जीवन और व्यक्त्वि दोनों हम सब के लिए प्रेरणादायी है।
मनीषा सोलंकी
मनीषा सोलंकी का जन्म गुजरात के एक छोटे गांव मंे हुआ। दलित समुदाय मे पैदा होना ही संघर्ष की शुरुआत होती है माताजी के दूसरे विवाह के साथ अपने निजी शौक और सपनांे को मारते हुए दसवी कक्षा के बाद आगे पढ़ नही पाई और उनका ब्याह करवा दिया गया। पहले गंाव मे पैदा होना फिर शहर में परवरिश और फिर गांव मे विवाह। उनके ससुराली गंाव मे शूद्रों के पानी का कुआं सूख गया और जो दूसरा कुआं था वहा से शूद्वों को इजाजत नहीं थी कि वह पानी भरे। मनीषा ने गांव में महिलाओं को सगंठित कर संघर्ष करते हुए कानून को तोड़ा और कुॅए से पानी भरने का काम ज़ारी रखा। गरीब परिवार, सास और पति का दबाव और कमाने वाला कोई नहीं, मनीषा मजदूरी से परिवार चलाती। परिवार मे झगडे़ बढते गये तो इन्होंने एन.जी.ओ. के साथ जुडकर काम किया परन्तु समाजिक बदलाव इनका लक्ष्य बन चुका था जिसके चलते उन्होंने घर पर रहकर ही लोगों की मदद करना शुरू कर दिया। सरपंच के चुनाव में जीत हासिल कर लोकहित के काम किये। बेटा एवं बेटी की परवरिश के बीच पारिवारिक झगडा कोर्ट में बदला और उन्हे तलाक लेना पड़ा, जीवन के काफी कठीन दिन थे, इन्हांेने नारी संरक्षण गृह मे बतौर आया का कार्य शुरू किया, बढ़ती महंगाई मंे वह संघर्ष कर रही थी, युवाओं-बच्चों-महिलाओं पर काम करने वाले संगठन के साथ जुडकर जिला छोटा उदयपुर मंे आदिवासी किसान संघर्ष मोर्चा को खड़ा करने मे अहम भूमिका निभाई। जिसमें आज वह बतौर संयोजक के रूप में कार्यरत होकर अपने नेतृत्व को मजबूत बनाने में सक्षम हैं।
गौर तलब है कि इस कार्यक्रम के तहत हमारी दोनों ही सशक्त महिला साथियों द्वारा काफी उत्साहवर्धन हुआ जिसके चलते उन्होंने अपने क्षेत्रों में काफी मजबूत महिला समूहों का निर्माण किया हैं। इन्हें अपने समुदाय की महिलाओं का भी भरपूर सहयोग मिल रहा है। फैलोशिप की यह सहायता फिलहाल तो एक वर्ष के लिए है लेकिन इस कार्यक्रम का अवलोकन कर आगे की रणनीति बनानी होगी। यूनियन द्वारा यह भी सोचा गया है कि फैलोशिप के इस कार्यक्रम को नए क्षेत्रों में ले जाना है जिससे महिला आंदोलन को वनक्षेत्र में विस्तार दिया जा सकें।
अपील
इस कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए काफी साथीयों, संगठनों की मदद की जरूरत है। हमें ऐसे कई महिला साथी खास तौर पर दलित व आदिवासी को चिन्हित करना है जो कि महिला हिंसा व जल-जंगल-जमंीन के सवाल पर संघर्ष कर रही है। इसके लिए हमें फैलाशिप की राशि में योगदान करना होगा या फिर इसे इक्टठा करना होगा।
इस कार्यक्रम के लिए बहुत सारे सुझावों व तमाम साथियों के मार्गदर्शन की आवश्यकता है। इसलिए 18 जनवरी 2015 को भारती जी की पुण्यतिथि पर हम उन्हें याद करते हुए इस कार्यक्रम को किस प्रकार से और भी सशक्त बनाना है इस पर चर्चा करेगें।
महिला शक्ति जिन्दाबाद
रोमा
उपमहासचिव
अखिल भारतीय वनजन श्रमजीवी यूनियन